चक्रव्यूह तैयार है। पश्चिम के पहले द्वार पर आज घमासान होगा। योद्धाओं के रण कौशल का इम्तिहान होगा। दांव पर बहुत कुछ है। पद भी, प्रतिष्ठा भी…। इम्तिहान उन प्रयोगशालाओं का भी है, जहां के तीर बड़े तीखे हैं। जो बहुत चुभते हैं। जो अंगार उगलते हैं। पाले भी तय करते हैं।
पहले चरण से जो हवा बहेगी, उसका असर अन्य चरणों पर भी होगा। खासकर दूसरे चरण की सीटों पर ताे इनका ज्यादा ही असर होगा। दूसरे चरण में 9 जिलों की 55 सीटों पर मतदान 14 फरवरी को होना है। कारण, दूसरे चरण में शामिल जिलों की इनसे करीबी। रहन-सहन एक जैसा होना। मेल-मिलाप होना। समस्याएं आैर मुद्दे एक जैसे होना। गंगा के दोनों किनारों के आसपास ही दोनों चरणों के जिले हैं। मसलन, अमरोहा में दूसरे चरण का चुनाव है जो हापुड़ और गाजियाबाद की सीमा से सटा है।
गंगा के इस पार और उस पार का मामला है। ऐसे ही बिजनौर है, जिसका मंडल भले ही मुरादाबाद हो, पर जुड़ाव मेरठ और मुजफ्फरनगर से ज्यादा है। सहारनपुर भी उन जिलों से जुड़ा है, जिनमें पहले चरण का संग्राम हो रहा है। वहां तो तैयारियां भी पहले चरण की तरह ही हो रही हैं। संभल, रामपुर के भी मिजाज वैसे ही हंै, जैसे मुजफ्फरनगर और मेरठ के हंै। यहां तक कि मुस्लिम बहुल आबादी का प्रतिशत भी पहले चरण के कई जिलों और विधानसभा क्षेत्रों से मिलता-जुलता है। ऐसे में यह माना जा रहा है कि पहले चरण से निकला संदेश दूसरे चरण के नौ जिलों में भी असर दिखाएगा।
जयंत के लिए खुद को साबित करने की चुनौती
इस चुनाव में रालोद अध्यक्ष चौधरी जयंत सिंह की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई है। चौधरी अजित सिंह के निधन के बाद यह पहला चुनाव है, जिसमें रालोद की जिम्मेदारी जयंत के कंधों पर है। दरअसल, पिछले तीन चुनाव रालोद के लिए किसी बुरे सपने जैसे रहे हैं। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में चौधरी अजित सिंह बागपत से हारे, तो जयंत मथुरा सेे। 2017 के विधानसभा चुनाव में तो रालोद की दुर्गति हो गई। रालोद बस एक ही सीट छपरौली जीता और छपरौली विधायक भी बाद में भाजपा में शामिल हो गए। लोकसभा 2019 का चुनाव आया तो रालोद, बसपा और सपा तीनों का गठबंधन हुआ। लगा कि इस बार नैया पार हो जाएगी। रालोद ने प्रयोग भी किया। अजित सिंह मुजफ्फरनगर से चुनावी रण में उतरे और जयंत ने बागपत से जोर आजमाया, पर दोनोें ही चुनाव हार गए। इस बार सपा और रालोद का गठबंधन है और रालोद इसे अपने लिए बेहतरीन मौका मान रहा है। बंटवारे में रालोद को 33 सीटें मिली हैं। रालोद के सामने ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने की चुनौती है। यही कारण है कि पश्चिम में रालोद ने पूरी ताकत झोंक दी है।
हिजाब का विवाद पहुंचा यूपी की सियासत में
पश्चिमी यूपी में मतदान से एक दिन पहले कर्नाटक का हिजाब विवाद यूपी की सियासत में दाखिल हो चुका है। लखनऊ में कांग्रेस का घोषणापत्र जारी करते हुए प्रियंका गांधी ने कहा कि महिलाएं जो भी चाहें पहने, यह उनकी पसंद का मामला है। एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी भी पश्चिम में चुनाव प्रचार के दौरान हिजाब का मुद्दा उठा रहे हैं। वहीं, जमीयत उलमा-ए-हिंद के मौलाना महमूद मदनी ने हिजाब पहनकर कॉलेज जाने वाली छात्रा बीबी मुस्कान को पांच लाख देने का एलान किया है।
हिजाब विवाद पर यूपी के मंत्री मोहसिन रजा ने कहा कि हमारे देश के संस्कार हैं कि हम लोग माताओं-बहनों का सम्मान करते हैं। जो हिजाब की बात कर रहे हैं, वे लोग बेहिजाब हैं। अपनी संस्कृति को देखें, तो हिजाब पर बात करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। ध्रुवीकरण के लिहाज से संवेदनशील पश्चिमी यूपी में मतदान से पहले गरम हुआ यह मुद्दा असर डाल सकता है। पश्चिमी यूपी में सबसे ज्यादा मुस्लिम 27 प्रतिशत हैं। इसके बाद दलित 25 प्रतिशत, जाट 17 प्रतिशत, क्षत्रिय 8 प्रतिशत औरे यादव 7 प्रतिशत हैं।
ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा की प्रतिष्ठा इस चुनाव में दांव पर लगी हुई है। फिर से मथुरा शहर सीट से चुनावी मैदान में उतरे श्रीकांत का मुकाबला कड़ा है। कांग्रेस के कद्दावर नेता प्रदीप माथुर का अपना वोट बैंक है। सपा-रालोद ने भाजपा के वैश्य वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए देवेंद्र अग्रवाल को मैदान में उतारा है। श्रीकांत शर्मा ने ब्राह्मणों, भाजपा के काडर वोट बैंक के साथ अन्य को पाले में लाने की पूरी कोशिश की, तो देवेंद्र ने वैश्य मतदाताओं में सेंध लगाने की पूरी कोशिश की। पर, बसपा ने एसके शर्मा को उतारकर चुनावी मुकाबले को रोमांचक बना दिया। एसके शर्मा ने ब्राह्मणों के वोट में सेंध लगाने की पूरी कोशिश की। साफ है कि यहां मुकाबला कांटे का होगा।
थानाभवन : कदम-कदम पर कांटे बिछे हैं यहां
गन्ना मंत्री सुरेश राणा फिर भाजपा से उम्मीदवार हैं। सपा-रालोद से अशरफ अली उन्हें कड़ी चुनौती दे रहे हैं। अशरफ ने जाट और मुस्लिमों को साधने में पूरी ताकत लगा दी है, जबकि राणा जाटों के अलावा वैश्य, सैनी, कश्यप, त्यागी, ब्राह्मणों में अपनी पकड़ बनाने का दावा कर रहे हैं। बसपा ने जहीर मलिक को टिकट देकर सपा-रालोद की राह में, तो कांग्रेस ने देवेंद्र कश्यप को टिकट देकर भाजपा के मतदाताओं में सेंध लगाकर उसकी राहों में कांटे बिछाने की कोशिश की है।
गाजियाबाद : वोटों के बंटवारे से कड़ी चुनौती
गाजियाबाद सीट से मंत्री अतुल गर्ग चुनावी मैदान में हैं। वैसे तो यह शहरी सीट है और भाजपा इस पर अच्छा-खासा प्रभाव रखती रही है। पर, इस बार मुकाबला कड़ा है। दरअसल, सपा-रालोद ने यहां से विशाल वर्मा को मैदान में उतारा, तो बसपा ने कृष्ण कुमार को। वहीं, कांग्रेस से सुशांत गोयल ने ताल ठोका है। इस सीट पर वैश्य मतदाता जीत-हार में बड़ी भूमिका अदा करते हैं। एक ही जाति से दो उम्मीदवार होने से वैश्य मतोंे का यहां बंटवारा होता दिख रहा है।
मुजफ्फरनगर : ध्रुवीकरण के फॉर्मूले की परीक्षा
मुजफ्फरनगर सदर सीट इस बार बेहद हॉट सीट में शामिल है। किसान आंदोलन की गूंज, दंगों का दंश जैसे कई अहम मुद्दे मुजफ्फरनगर की फिजा में गूंजते रहे हैं। भाजपा से मंत्री कपिलदेव अग्रवाल फिर से चुनाव मैदान में हैं। भाजपा का काडर वोटर तो उनके साथ है ही, साथ ही वे ध्रुवीकरण का फॉर्मूला इस्तेमाल करने में भी माहिर हैं। हां, इस बार वे अपने इस प्रिय सूत्र को कितना अमली जामा पहना पाते हैं, यह अलग सवाल है। मुकाबले में पुराने दिग्गज रहे चितरंजन स्वरूप के बेटे सौरभ स्वरूप हैं। वे भी वैश्य ही हैं। ऐसे में चुनावी मैच रोमांचक हो गया है। जाट, मुस्लिम व अन्य बिरादरियों का रुख यहां हार-जीत का अंतर तय करेगा। यहां बसपा के सुरेद्र पाल सिंह और कांग्रेस के पंडित सुबोध शर्मा किसी का भी खेल बनाने और बिगाड़ने का माद्दा रखते हैं।
अतरौली : सपा से मिल रही कड़ी चुनौती
पूर्व मुख्यमंत्री स्व. कल्याण सिंह के पौत्र राज्यमंत्री संदीप सिंह फिर से अतरौली विधानसभा सीट से ताल ठोक रहे हैं। अतरौली में भले ही इस परिवार का दबदबा माना जाता रहा हो, पर इस बार माहौल बदला है। इस बार उन्हें कड़ी चुनौती मिल रही है। सपा ने यहां यादव कार्ड खेला है। यहां यादव मतदाता काफी हैं। मुस्लिम-यादव समीकरण के जरिये यहां सपा मैदान मारने की जुगत में है।
छाता : रण कौशल की परीक्षा
छाता सीट से मंत्री चौधरी लक्ष्मीनारायण ने फिर से चुनावी रण में भाजपा की ओर से हुंकार भरी है। उधर, सपा-रालोद ने यहां ठाकुर कार्ड खेलते हुए चौ. लक्ष्मीनारायण के चिर-परिचित प्रतिद्वंद्वी तेजपाल सिंह को मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने सोहनपाल सिंह एवं कांग्रेस ने पूनम देवी को मैदान में उतारा है। कई बार विधायक रह चुके लक्ष्मीनारायण का इम्तिहान लेने के लिए यहां चक्रव्यूह तैयार है।
शिकारपुर : गढ़ में मुकाबला दिलचस्प
बुलंदशहर की शिकारपुर विधानसभा सीट भाजपा का गढ़ कही जाती रही है। इस बार यहां मुकाबला दिलचस्प है। भाजपा से मंत्री अनिल शर्मा फिर अखाड़े में हैं। रालोद ने जाट कार्ड खेलते हुए किरनपाल सिंह पर दांव लगाया है। किरनपाल पुराने दिग्गज हैं और उनके आने से यहां मुकाबला दिलचस्प हो गया है। बसपा ने मो. रफीक और कांग्रेस ने जियाउर्रहमान को मैदान में उतारा है।
हस्तिनापुर : गुर्जर लगाएंगे बेड़ा पार
यहां से मंत्री दिनेश खटीक फिर से ताल ठोक रहे हैं, तो सामने मुकाबले में गठबंधन से योगेश वर्मा हैं। दोनों में जोरदार टक्कर से मुकाबला बेहद रोमांचक बन गया है। कांग्रेस ने यहां अभिनेत्री अर्चना गौतम को टिकट दिया है, तो बसपा ने संजीव जाटव को। इस सीट पर गुर्जर मतदाताओं की भूमिका बेहद अहम है। गुर्जर जिसके भी खेमे में गए, उसका बेड़ा पार होना तय है। सभी ने गुर्जरों को रिझाने की पूरी कोशिश की है।
आगरा छावनी : किसका रंग होगा चोखा
आगरा छावनी सुरक्षित सीट से मंत्री जीएस धर्मेश इस बार भी चुनावी मैदान में हैं। धर्मेश की राहें भी इस बार काफी चुनौतीपूर्ण हैं। कुल मिलाकर कह सकते हैं किमुकाबला कड़ा है। सपा-रालोद ने कुंवर चंद वकील, बसपा ने भारतेंद्र अरुण और कांग्रेस ने सिकंदर सिंह को दंगल में उतारा है। यहां दलितों के साथ जो भी अन्य जातियों में जितना ज्यादा सेंध लगा लेगा, जीत उसी की होगी।
सरधना : दलित तय करेंगे जीत-हार
भाजपा के फायर ब्रांड नेता संगीत सोम की प्रतिष्ठा इस सीट पर दांव पर लगी है। फिलहाल मुकाबला जोरदार है। सामने सपा के अतुल प्रधान हैं और इस बार पूरी मजबूती से ताल ठोक रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि दोनों अपने-अपने मूल मतदाताओं के अलावा इस बार दलित मतदाताओं में सेंध लगाने की पूरी कोशिश की है। दलित वोटर का थोड़ा सा ही सही, अगर किसी तरफ झुकाव हुआ तो परिणाम बदल जाएंगे। बसपा ने यहां संजीव धामा को टिकट देकर जाट व दलित मतदाताओं में सेंध लगाने की कोशिश की है, तो कांग्रेस ने सईद रिहानुद्दीन को टिकट देकर मुस्लिम कार्ड खेला है।
कैराना की प्रयोगशाला का भी इम्तिहान
पलायन के मुद्दे से सुर्खियों में आए कैराना का महत्व इतना ज्यादा है कि सीएम योगी से लेकर गृहमंत्री अमित शाह तक यहां कई बार जा चुके हैं। भाजपा से फिर मृगांका सिंह मैदान में हैं तो सपा ने पिछले चुनाव के विजेता नाहिद हसन पर ही दांव खेला है। बसपा ने राजेंद्र उपाध्याय को टिकट दिया है, तो कांग्रेस ने मुस्लिम कार्ड खेलते हुए मो. अखलाक को मैदान में उतारा है। बयानों के यहां खूब तीर चले। यह वो सीट है जिसका असर अन्य सीटों पर भी पड़ता दिख रहा है।
आगरा ग्रामीण : दांव पर बेबीरानी मौर्य की प्रतिष्ठा
उत्तराखंड के राज्यपाल पद से त्यागपत्र देकर आगरा ग्रामीण सीट के चुनावी महासमर में उतरीं भाजपा की बेबीरानी मौर्य के कारण इस सीट पर सबकी नजर है। इस सुरक्षित सीट पर भाजपा ने मजबूत चेहरा उतारकर समीकरण अपने पक्ष में करने की कोशिश की है। पर, सपा-रालोद ने महेश जाटव को उतारकर मुकाबले को चुनौतीपूर्ण बना दिया है। उधर, बसपा ने किरन प्रभा और कांग्रेस ने उपेंद्र सिंह को टिकट दिया है।
लोनी : गुर्जर मतदाता निभाएंगे अहम भूमिका
भाजपा विधायक नंदकिशोर गुर्जर फिर से मैदान में हैं। सपा-रालोद से पूर्व विधायक मदन भैया के आने से मुकाबला बेहद दिलचस्प हो गया है। यहां गुर्जर मतदाता अच्छी खासी संख्या में हैं। सपा-रालोद गठबंधन इस सीट पर जाट-गुर्जर और मुस्लिम समीकरण बनाने की पूरी कोशिश की है। वहीं, भाजपा गुर्जर, अति पिछड़े और अपने काडर वोटर के सहारे है। मुस्लिमों में यहां बसपा के आकिल चौधरी सेंध लगा रहे हैं। कांग्रेस के यामीन मलिक भी मजबूती से चुनावी रण में हैं।
धौलाना : बदले किरदार क्या गुला खिलाएंगेेेेे
इस सीट पर इस बार किरदार बदले हैं। पिछली बार यहां बसपा से जीते असलम चौधरी ने इस बार पाला बदल लिया और वह गठबंधन से चुनावी मैदान में उतरे हैं। इसे देखकर भाजपा ने धर्मेश तोमर को उतारा है। बसपा ने वासिद अली को टिकट देकर मुस्लिम कार्ड खेला, तो कांग्रेस ने ब्राह्मण कार्ड खेलते हुए अरविंद शर्मा पर दांव लगाया है।
जेवर : सीट पर हैं सबकी नजरें
सपा-रालोद गठबंधन से अवतार सिंह भड़ाना के मैदान में आने से जेवर सीट भी हॉट हो गई है। यहां धीरेंद्र सिंह भाजपा के टिकट पर चुनावी मैदान में हैं। भड़ाना के आने के बाद से ही यहां मुकाबला बेहद दिलचस्प हो गया है। भड़ाना मीरापुर से पिछली बार भाजपा से विधायक बने थे, पर बाद में भाजपा से दूर हो गए।
विस्तार
पहले चरण से जो हवा बहेगी, उसका असर अन्य चरणों पर भी होगा। खासकर दूसरे चरण की सीटों पर ताे इनका ज्यादा ही असर होगा। दूसरे चरण में 9 जिलों की 55 सीटों पर मतदान 14 फरवरी को होना है। कारण, दूसरे चरण में शामिल जिलों की इनसे करीबी। रहन-सहन एक जैसा होना। मेल-मिलाप होना। समस्याएं आैर मुद्दे एक जैसे होना। गंगा के दोनों किनारों के आसपास ही दोनों चरणों के जिले हैं। मसलन, अमरोहा में दूसरे चरण का चुनाव है जो हापुड़ और गाजियाबाद की सीमा से सटा है।
गंगा के इस पार और उस पार का मामला है। ऐसे ही बिजनौर है, जिसका मंडल भले ही मुरादाबाद हो, पर जुड़ाव मेरठ और मुजफ्फरनगर से ज्यादा है। सहारनपुर भी उन जिलों से जुड़ा है, जिनमें पहले चरण का संग्राम हो रहा है। वहां तो तैयारियां भी पहले चरण की तरह ही हो रही हैं। संभल, रामपुर के भी मिजाज वैसे ही हंै, जैसे मुजफ्फरनगर और मेरठ के हंै। यहां तक कि मुस्लिम बहुल आबादी का प्रतिशत भी पहले चरण के कई जिलों और विधानसभा क्षेत्रों से मिलता-जुलता है। ऐसे में यह माना जा रहा है कि पहले चरण से निकला संदेश दूसरे चरण के नौ जिलों में भी असर दिखाएगा।
जयंत के लिए खुद को साबित करने की चुनौती
इस चुनाव में रालोद अध्यक्ष चौधरी जयंत सिंह की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई है। चौधरी अजित सिंह के निधन के बाद यह पहला चुनाव है, जिसमें रालोद की जिम्मेदारी जयंत के कंधों पर है। दरअसल, पिछले तीन चुनाव रालोद के लिए किसी बुरे सपने जैसे रहे हैं। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में चौधरी अजित सिंह बागपत से हारे, तो जयंत मथुरा सेे। 2017 के विधानसभा चुनाव में तो रालोद की दुर्गति हो गई। रालोद बस एक ही सीट छपरौली जीता और छपरौली विधायक भी बाद में भाजपा में शामिल हो गए। लोकसभा 2019 का चुनाव आया तो रालोद, बसपा और सपा तीनों का गठबंधन हुआ। लगा कि इस बार नैया पार हो जाएगी। रालोद ने प्रयोग भी किया। अजित सिंह मुजफ्फरनगर से चुनावी रण में उतरे और जयंत ने बागपत से जोर आजमाया, पर दोनोें ही चुनाव हार गए। इस बार सपा और रालोद का गठबंधन है और रालोद इसे अपने लिए बेहतरीन मौका मान रहा है। बंटवारे में रालोद को 33 सीटें मिली हैं। रालोद के सामने ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने की चुनौती है। यही कारण है कि पश्चिम में रालोद ने पूरी ताकत झोंक दी है।
हिजाब का विवाद पहुंचा यूपी की सियासत में
पश्चिमी यूपी में मतदान से एक दिन पहले कर्नाटक का हिजाब विवाद यूपी की सियासत में दाखिल हो चुका है। लखनऊ में कांग्रेस का घोषणापत्र जारी करते हुए प्रियंका गांधी ने कहा कि महिलाएं जो भी चाहें पहने, यह उनकी पसंद का मामला है। एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी भी पश्चिम में चुनाव प्रचार के दौरान हिजाब का मुद्दा उठा रहे हैं। वहीं, जमीयत उलमा-ए-हिंद के मौलाना महमूद मदनी ने हिजाब पहनकर कॉलेज जाने वाली छात्रा बीबी मुस्कान को पांच लाख देने का एलान किया है।
हिजाब विवाद पर यूपी के मंत्री मोहसिन रजा ने कहा कि हमारे देश के संस्कार हैं कि हम लोग माताओं-बहनों का सम्मान करते हैं। जो हिजाब की बात कर रहे हैं, वे लोग बेहिजाब हैं। अपनी संस्कृति को देखें, तो हिजाब पर बात करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। ध्रुवीकरण के लिहाज से संवेदनशील पश्चिमी यूपी में मतदान से पहले गरम हुआ यह मुद्दा असर डाल सकता है। पश्चिमी यूपी में सबसे ज्यादा मुस्लिम 27 प्रतिशत हैं। इसके बाद दलित 25 प्रतिशत, जाट 17 प्रतिशत, क्षत्रिय 8 प्रतिशत औरे यादव 7 प्रतिशत हैं।