हाईकोर्ट : प्राथमिकी रद्द करने की मांग वाली याचिका में आरोपी के बचाव पर विचार नहीं किया जा सकता है
सारांश
याचिका में आरोपी ने प्राथमिकी रद्द करने की मांग की थी। याचिकाकर्ता कालीचरण पर महिला को परेशान करने, जिंदा जलाने और उसकी हत्या करने का आरोप है. उसके खिलाफ इज्जतनगर थाने में धारा 302, 120बी के तहत मामला दर्ज किया गया है।
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विस्तार
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि प्रथम सूचना रिपोर्ट (AFIR) को रद्द करने की मांग वाली याचिका पर विचार करते समय आरोपी के बचाव को ध्यान में नहीं रखा जा सकता है। यह आदेश न्यायमूर्ति अंजनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की खंडपीठ ने बरेली जिले के इज्जत नगर थाना निवासी कालीचरण की याचिका को खारिज करते हुए दिया है.
याचिका में आरोपी ने प्राथमिकी रद्द करने की मांग की थी। याचिकाकर्ता कालीचरण पर महिला को परेशान करने, जिंदा जलाने और उसकी हत्या करने का आरोप है. उसके खिलाफ इज्जतनगर थाने में धारा 302, 120बी के तहत मामला दर्ज किया गया है।
अदालत के समक्ष याचिकाकर्ता की दलील थी कि महिला को दुर्घटनावश जलने से चोटें आई हैं। उनके कहने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया और उनकी मृत्यु के बाद शव उनके पिता को सौंप दिया गया। अदालत के समक्ष यह भी कहा गया कि मृतक के पिता ने सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत आवेदन दाखिल करने से पहले पुलिस अधिकारियों से शिकायत की थी। परिवाद में याचिकाकर्ता के पक्ष में जांच की गई।
हालांकि बाद में 18 मार्च 2021 को याचिकाकर्ता ने महिला के पिता को फोन कर उसकी मौत की जानकारी दी। यह तर्क दिया गया कि कथित घटना और उपचार के बारे में मृतक के पिता को पहले कोई सूचना नहीं दी गई थी। बताया जाता है कि महिला का कई अस्पतालों में इलाज चल रहा था। दोनों पक्षों के वकील को सुनने और प्रथम सूचना रिपोर्ट पर गौर करने पर, न्यायालय ने पाया कि प्राथमिकी में संज्ञेय अपराध के तत्व शामिल हैं। इसे देखते हुए कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।