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लखनऊ में पिछले तीन महीनों अबतक कुल 398 अग्निकांड केस और दमकल विभाग के पास संसाधनों की कमी ।

लखनऊ में सोमवार रात इंदिरानगर की एक कॉमर्शियल बिल्डिंग समेत तीन जगह आग लगी। इसके पहले रविवार को इलाकों में चार आग की घटनाएं हुई। इसी महीने अमीनाबाद जैसी घनी बाजार और बैंकों सहित 398 जगह लगी भीषण आग ने फायर बिग्रेड के हाथ पांव फुला दिए क्योंकि फायर ब्रिगेड के पास आग बुझाने के लिए न तो पर्याप्त संसाधन हैं न ही मैन पावर है।

फायर सर्विस के अधिकारियों का कहना है कि सकरी गलियों और मोहल्लों में दुकानें खोलने की इजाजत देकर एलडीए ने आग भड़काने के सामान की भरमार कर दी। मगर, फायर सर्विस विभाग आग लगने पर उसे बुझाने के पर्याप्त संसाधन नहीं जुटा पा रहा है। हालात यह है कि शहर के किसी इलाके की बाजार में आग लगने पर पड़ोसी जिलों की फायर ब्रिगेड से मदद मांगने पर भी स्थित काबू कर पाना आसान नहीं होगा।

 

फायर सर्विस विभाग सीमित संसाधनों में सुरक्षा का भरोसा दिला रहा है।

 

जगह-जगह फैली झुग्गी-झोपड़ियां और खतरा पैदा कर रही हैं। फायर सर्विस विभाग सीमित संसाधनों में सुरक्षा का भरोसा दिला रहा है। मगर, बाकी जिम्मेदार विभाग बेफिक्र होकर खामियों की तरह से आंख फेरे बैठे हैं।

 

सकरी गलियों में जानलेवा बन सकती हैं आग की लपटें

 

फायर सर्विस विभाग के रिकॉर्ड में चौक, यहियागंज, रकाबगंज, अमीनाबाद, लाटूश रोड, नाका हिंडोला, हैदरगंज, बालागंज, ऐशबाग, अलीगंज का चांदगंज, गोमतीनगर का पत्रकारपुरम सहित शहर की करीब आधी आबादी सकरी गलियों में बसी है। करीब 14 से 15 लाख आबादी वाले इन इलाकों में आग लगने पर बुझाने की हर कोशिश बेकार हो जाएगी। यहां दमकल के पहुंचने के रास्ते नहीं हैं और इन इलाकों में छोटे-छोटे कारोबार की भरमार है।

 

इन गलियों के हर मकान में दुकानें चल रही हैं। किसी दुकान में किराने का सामान भरा है, तो कही प्लास्टिक के सामानों का व्यवसाय हो रहा है। दमकल की गाड़ी दूर खड़ी कर पानी का पाइप पहुंचाने में जितनी देर लगेगी, उतने समय में यहां आग से सब-कुछ जलाकर राख हो चुका होगा। बीते दिनों में अमीनाबाद और ऐशबाग में आग लगने के दौरान ऐसे ही हालात सामने आ चुके हैं।

 

हर इलाके की अपनी अलग समस्या

 

आग लगने पर तुरंत मौके पर पहुंचने में दमकल कर्मियों को लगने वाला समय है चुनौती।

 

सीएफओ विजय कुमार सिंह के मुताबिक, नाका के चारबाग में सकरी गलियों में बने होटल बेहद खतरनाक हैं। ऐशबाग में लकड़ी का कारोबार काफी बड़ा हो चुका है। चौक में हर तरह के व्यवसाय के साथ सर्राफा बाजार आग के लिहाज से बहुत संवेदनशील है। सोने-चांदी की कारीगारी के लिए इस्तेमाल होने वाले केमिकल काफी ज्वलनशील होते हैं। यहियागंज में सर्राफा और बर्तन की कारीगरी होती है। यहां भी रसायन का इस्तेमाल खूब हो रहा है। गोमतीनगर के पत्रकारपुरम में कपड़ों के शोरुम और सजावट के सामान भी आग को बढ़ाने के लिए काफी हैं। अमीनाबाद कपड़े, कॉस्मटिक, प्लास्टिक के सामानों की सबसे बड़ी बाजार है।

 

रिहायशी इलाकों के आस-पास बसी है झोपड़पट्टी

 

नगर निगम के आंकड़ों के मुताबिक, शहरभर में करीब 600 झोपड़पट्टी वाली बस्तियां हैं। इनमें असमियां, बंग्लादेशी, बिहारी और पूर्वांचल सहित प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों के मजदूरों की तीन लाख से ज्यादा आबादी रहती हैं। रेलवे स्टेशन, बंधों के अलावा ज्यादतार झोपड़ियां रियाशी इलाकों के बीच बसी हैं। बांस और प्लास्टिक की पन्नियों से बनी झोपड़ियों में पेट्रोल की तरह आग फैलती है। यहां आग लगने पर रिहायशी इलाकों की सुरक्षा भी खतरे में पड़ जाती है।

 

LDA जमीन दे रहा, नगर निगम सुविधाएं

 

फायर सर्विस के अफसरों का कहना है कि एलडीए के खाली प्लाट पर स्थानीय नेता और ठेकेदार विभाग से सांठगांठ कर मजदूरों की झोपड़ियां बसवा रहे हैं। अवैध बस्ती बसने के बाद नगर निगम यहां मूलभूत सुविधाएं मुहैया करा रहा है। इसके बाद लेसा भी बिजली कनेक्शन देकर आग लगने की मुख्य वजह तैयार कर देता है। आग लगने के बाद विभागों की करतूस सामने आने पर भी न तो बस्ती को हटाकर सुरक्षा पुख्ता कराया जा रहा है न यहां रहने वालों के पुनर्वास की ओर ध्यान जा रहा है।

 

रास्ता नहीं खाली करा पाती है ट्रैफिक पुलिस

 

अग्नि सुरक्षा नियमावली के मुताबिक शहरी क्षेत्र में आग की सूचना मिलने के सात मिनट के भीतर दमकल को घटनास्थल पर पहुंचना होता है। मगर, राजधानी की सड़कों पर दौड़ते बेहिसाब ट्रैफिक की वजह से अमूनन बीस मिनट का वक्त लग रहा है। फायर ब्रिगेड की गाड़ी निकलती है, तो जाम से उलझते हुए उसे गुजरना पड़ता है। चौराहों और प्रमुख सड़कों पर खड़ी ट्रैफिक पुलिस दमकल को देखकर भी रास्ता खाली नहीं करा पाती है। शहर के फायर हाइड्रेंट गायब होने की वजह से घटनास्थल पर पहुंचने के बाद पानी मिलने की समस्या भी खड़ी हो जाती है।

 

50 हजार आबादी पर एक यूनिट दमकल का मानक

 

 

मानक के अनुरूप नहीं हैं फायर विभाग के पास संसाधन।

साल 2007 में प्रमुख सचिव जेएन चेंबर ने फायर सुरक्षा को नाकाफी मानकर फायर स्टेशन के नए मानक तय करते हुए शासनादेश जारी किया था। इसके लिए आबादी और फायर ब्रिगेड के घटनास्थल तक पहुंचने के समय को आधार बनाया गया। आदेश के मुताबिक प्रति पचास हजार आबादी पर तीन फायरमैन, एक ड्राइवर से लैस दमकल की एक यूनिट होनी चाहिए। शहरी क्षेत्र में एक यूनिट से दूसरे यूनिट की दूरी पाच वर्ग किलोमीटर से अधिक न हो।

 

यही नहीं आग लगने पर घटना स्थल तक पहुंचने के लिए 7 से 10 मिनट का समय भी निर्धारित किया गया था। महानगरों के लिए सात यूनिट के एक फायर स्टेशन आदेश में शामिल हैं। लखनऊ की मौजूदा आबादी 58 लाख के ऊपर है। मानक के अनुसार यहां दमकल की 120 यूनिट और 18 फायर स्टेशन होने चाहिए।

 

इस साल हुई आग की घटनाएं

 

जनवरी 83

फरवरी 100

मार्च 216

फायर ब्रिगेड में संसाधन और मैनपॉवर

 

फायर स्टेशन 8

दमकल 32

फायर अफसर 6

2 फायर अफसर 7

लीडिंग फायरमैन 34

ड्राइवर 57

फायरमैन 232

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